कश्मीर में सुरक्षा बलों के 10 हज़ार लोगों की जम्मू-कश्मीर में तैनाती से कई सवाल खड़े हो गए हैं। यह सवाल आम जनता ही नहीं, सुरक्षा बलों और राजनीतिक दलों के बीच भी पूछा जा रहा है कि इसके पीछे क्या वजह है। क्या इस सुलगते हुए राज्य में पुलवामा की तरह किसी बड़े आतंकवादी हमले की आशंका है? क्या कठोर कार्रवाई में यकीन रखने वाली नरेंद्र मोदी सरकार का मानना है कि पूरे राज्य को छावनी में तब्दील कर देने से कश्मीर समस्या का समाधान हो जाएगा? क्या सरकार संविधान के अनुच्छेद 35 ‘ए’ को ख़त्म करने जा रही है?
महबूबा के ट्वीट से हड़कंप
राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की प्रमुख महबूब मुफ़्ती के बयान से पूरे प्रदेश में हड़कंप मचा हुआ है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “राज्य की विशेष स्थिति में किसी तरह की छेड़छाड़ की कोशिश का वह मरते दम तक विरोध करेंगी”। उन्होंने आगे कहा कि “नई दिल्ली को यह समझना चाहिए कि पीडीपी अकेली पार्टी है जो विशेष स्थिति और पहचान बचाए रखने के लिए दीवाल की तरह खड़ी हो सकती है”।
हालाँकि अनुच्छेद 35 ए को चुनौती देने वाली कई याचिकाएँ जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में पड़ी हुई हैं, लेकिन इसकी संभावना निहायत ही कम है कि केंद्र सरकार इसे ख़त्म कर दे। पर्यवेक्षकों का कहना है कि धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए पर सत्तारूढ़ दल राजनीति जितना कर ले, उसे ख़त्म करने के बारे में सोच भी नहीं सकता।
क्या फिर होगा आतंकवादी हमला?
तो क्या पुलवामा जैसा कोई हमला होने वाला है? पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसकी आशंका भी फ़िलहाल कम है। इसकी वजह पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति, उसकी आर्थिक बदहाली और अंतरराष्ट्रीय दबाव है। प्रधानमंत्री इमरान ख़ान बड़ी शिद्दत से पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं और वह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से बड़ी मुश्किल से 6 अरब डॉलर का कर्ज ले पाए हैं। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अलग-थलग पाकिस्तान दिखावे के लिए ही सही, हाफ़िज सईद जैसे आतंकवादी को गिरफ़्तार करने की हिम्मत दिखा रहा है। पाकिस्तान की राजनीति में यह बहुत ही जोख़िम भरा कदम है।
क्या अमरनाथ यात्रा के लिए तैनाती?
राज्य के पुलिस प्रमुख ने कहा कि यह तो रूटीन तैनाती है और सुरक्षा स्थिति के मद्देनज़र बीच बीच में इस तरह की तैनाती होती रहती है। इसमें कोई ख़ास बात नहीं है। राज्यपाल सत्यपाल मलिक के सलाहकार के. विजय कुमार ने भी ऐसा ही कुछ कहा “राज्य की सुरक्षा स्थिति के गंभीर विश्लेषण के बाद सोची समझी रणनीति के तहत अतिरिक्त सुरक्षा बलों को बुलाया गया है, उनमें से ज़्यादातर लोगों को अमरनाथ यात्रा से जुड़े सुरक्षा इंतजाम में लगाया गया है”।
के. विजय कुमार , जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के विशेष सलाहकार
लेकिन अमरनाथ यात्रा के लिए तो पहले से ही 32 हज़ार सुरक्षकर्मी तैनात हैं। पिछले साल अमरनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को ले जा रही एक बस पर गोलीबारी हुई थी, बीते दिन 40 हज़ार जवानों को राज्य में तैनात किया गया था। नई तैनाती मिला कर पूरे राज्य में लगभग 1.20 लाख जवान व अफ़सर तैनात हैं।
क्या हैं सरकार की नीयत?
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने जम्मू-कश्मीर का दौरा करने के बाद शुक्रवार को ही एक उच्च स्तरीय बैठक की और शनिवार को अतिरिक्त तैनाती का आदेश जारी कर दिया था। लेकिन उसके बाद रविवार को भी एक बैठक हुई, जिसमें डोभाल मौजूद थे। डोभाल अपनी ‘प्रो-एक्टिव’ नीतियों के लिए जाने जाते हैं। केंद्र सरकार ने उन्हें खुली छूट दे रखी है और वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नज़दीक समझे जाते हैं। कश्मीर मुद्दे पर मोदी सरकार की नीति कांग्रेस सरकारों, यहाँ तक कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की नीतियों से अलग इस मामले में है वह किसी तरह के मेल मिलाप, नरमी या बातचीत के पक्ष में नहीं है।
क्या किया विशेष दूत ने?
इस सरकार का मानना है कि सख़्ती से निपट कर ही कश्मीर मुद्दे का समाधान ढूंढा जा सकता है। मोदी सरकार ने कश्मीर मुद्दे पर सभी पक्षों से बात करने के लिए अक्टूबर 2017 में ही दिनेश्वर शर्मा को विशेष दूत नियुक्त किया। इस पूर्व इंटेलीजेन्स ब्यूरो प्रमुख की नियुक्ति को काफी सकारात्मक कदम माना गया था। पर नतीजा वही रहा, ढाक के तीन पात। शर्मा ने क्या रिपोर्ट दी या उस रिपोर्ट का क्या हुआ, किसी को नहीं पता।
इस सख़्ती की नीति से जम्मू-कश्मीर समस्या का कितना समाधान होगा, यह सवाल महत्वपूर्ण ज़रूर है, पर फ़िलहाल यह सवाल कोई पूछ नहीं सकता। लोकसभा में ज़बरदस्त बहुमत हासिल करने वाली पार्टी के सामने वह पार्टी है, जो हार के दो महीने बाद यही तय नहीं कर पा रही है कि उसका अध्यक्ष कौन होगा। ऐसे में कश्मीर को कौन पूछता है?